पुस्तकालय वह स्थान है जहाँ विविध प्रकार के ज्ञान, सूचनाओं, स्रोतों, सेवाओं आदि का संग्रह रहता है। पुस्तकालय शब्द अंग्रेजी के लाइब्रेरी शब्द का हिंदी रूपांतर है। लाइब्रेरी शब्द की उत्पत्ति लेतिन शब्द ‘लाइवर‘ से हुई है, जिसका अर्थ है पुसतक, पुस्तकालय का इतिहास लेखन प्रणाली पुस्तकों और दस्तावेज के स्वरूप को संरक्षित रखने की पद्धतियों और प्रणालियों से जुडा है।
पुस्तकालय का इतिहास दस्तावेजों के संग्रह को व्यवस्थित करने के लिए प्रथम प्रयासों के साथ शुरू किया गया। राष्ट्रीय पुस्तकालय के इतिहास 1836 में कलकत्ता पब्लिक लाइब्रेरी के गठन के साथ शुरू हुआ, जो एक गैर-सरकारी संस्था थी और उसे एक मालिकाना आधार पर चलाया गया था। उत्तर प्रदेश में पुस्तकालय विशाल ज्ञान के आधार का भंडार हैं और पेचीदा तथ्यों, ऐतिहासिक परिद्दश्यों की एक दुनिया के साथ मौजूद है, समाजिक-सांस्कृति पहलुओं और अन्य सामान को समृद्ध। कई दुर्लभ पांडुलिपियों, पुस्तकों और भारतीय इतिहास के अन्य महत्वपूर्ण कलाकृतियों का अनूठा संग्रह सावधानी से उत्त्र प्रदेश के पुस्तकालयों में संरक्षित किया गया है।
सार्वजनिक पुस्तकालयों का विकास वास्तव में प्रज्ञातंत्र की महान देन है। शिक्षा का प्रसारण एवं जनसामान्य को सुशिक्षित करना प्रत्येक राष्ट्र का कर्तव्य है। जो लोग स्कूलों या कालेजों में नहीं पढते, जो साधारण पढे लिखे हैं, अपना निजी व्यवसाय करते हैं अथवा जिनकी पढने की अभिलाषा है और पुस्तकें नहीं खरीद सकते तथा अपनी रूचि का साहित्य पढना चाहते हैं, ऐसे वर्गों की रूची को ध्यान में रखकर जनसाधारण की पुस्तकों की माँग सार्वजनिक पुस्तकालय ही पुरी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त प्रदर्शनी, वादविवाद, शिक्षाप्रद चलचित्र प्रदर्शन, महत्वपूर्ण विषयों पर भाषण आदि का भी प्रबंध सार्वजनिक पुस्तकालय करते हैं। इस दिशा में यूनैसको जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन ने बडा महत्वपूर्ण योगदान किया है। प्रत्येक प्रगतिशील देश में जन पुस्तकालय निरंतर प्रगति कर रहे हैं और साक्षरता का प्रसार कर रहे हैं। वास्तव में लोक पुस्तकालय जनता के विश्वविद्यालय हैं, जो बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक नागरिक के उपयोग के लिए खुले रहते है।